देशपाल सिंह पंवार
जनादेश क्या रहा? नीतीश के सर पर या लालू के डर पर जनता ने मुहर लगाई। चाहे सब कहते घूम रहे हों कि नीतीश का जादू चल गया। विकास का पहिया घूम गया । जातिगत समीकरण ध्वस्त हो गए। पर हकीकत ये भी है कि जनता ने लालू विरोध के नाम पर भी ये जनादेश दिया। मतदाताओं का सबसे बड़ा समूह ऐसा रहा जो नीतीश को भले ही वोट ना देता पर लालू ना आ जाए इस डर से वो आंख बंद करके नीतीश के पीछे चला गया। यही कारण है कि सबको जातिगत समीकरण बिखरते नजर आ रहे हैं। इस हकीकत से परदा एक ना एक दिन जरूर उठेगा पर फिलहाल तो राजग के जश्न का दौर है और राजद के पतन का। लालू ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि राजद का इस तरह बंटाधार होगा। लोकसभा चुनाव में भी ऐसे ही नतीजे आए थे पर वो खुद मुगालते में जी रहे थे कि विधानसभा में क्रांति जरूर करेंगे। इसी मुगालते में वो 15 साल राज भी चलाते रहे। इसी मुगालते की वजह से वो 2005 में ताज भी गंवा बैठे थे। इसी मुगालते के चलते वो सारी जमीन ही अब गंवा बैठे। अगर उन्हें ये मुगालता ना होता तो शायद ही खुद को इस जंग का कप्तान बनाते। अगर ऐसा नहीं करते तो शायद इस बुधवार जैसी पीड़ा उन्हें छू नहीं पाती। पर अगर -मगर से कुछ नहीं होता। होई वही जो राम रचि राखा। हां इससे बड़ी हार उन्हें अब कभी देखने को नहीं मिलेगी। खुद दोनों जगह से राबड़ी की हार और नीतीश कुमार व बीजेपी की जीत को वो पचा नहीं पा रहे हैं। सब कुछ हार गए। उन्हें अब मान लेना चाहिए इसे ही कहते हैं वक्त। एक वक्त ऐसा भी था कि ऊपर वाले ने इतना दिया -जितना इस समय नीतीश की झोली में भी नहीं है। पर लाठी से प्रेम करने वाले ये राजनेता शायद इस बात को बिसरा गया कि सबसे बड़ा लठैत वक्त है। ऊपर वाला है। जिसकी लाठी में आवाज नहीं होती। जिस अंदाज से उसने दिया था उसी अंदाज में राजनीति की बिसात पर सब कुछ ले भी लिया। वे आज सबसे बड़े हारे हुए जुआरी हैं। अब भी अगर मुगालते में हैं तो ईश्वर बचाए। हकीकत में अब मुगालते से बाहर निकलकर आत्ममंथन करने और सही दिशा में चलने का वक्त है तभी वक्त किसी ना किसी मोड़ पर उनका साथ देगा। अब उनकी समझ में आ जाना चाहिए कि नाम से राजनीति नहीं चलती। वोट नहीं मिलते हां करारी चोट जरूर पड़ जाती है। वोट मिलते हैं काम से। आखिर तक वो इस मुगालते में रह गए कि काम की बात करके देख ली जाए। पर जिसके शासन को जनता 15 साल देख चुकी हो उसके ऊपर ये विश्वास कैसे करती कि वो सत्ता में आने पर हर हाथ को रोटी-हर सिर को छत और हर तन को कपड़ा देंगे। वो यहीं चूक गए। लालू ने नीतीश बनने की कोशिश की इस चक्कर में असली लालू कहीं खोकर रह गया। अपने वोट बैंक को जिस अंदाज में लालू पटाया करते थे, मनाया करते थे, गरियाया करते थे वो लालू उस जनता को कहीं नजर ही नहीं आया जो उनके पीछे पागल थी। वो कन्फयूज्ड हो गई। नीतीश को इलीट वर्ग का नेता और लालू को अपना मानने वाली जनता गुल हो गई। राजग के विकास के नारे की चकाचौंध में खो गई। राजद को ही धो गई। राजद की हार के तमाम कारण हैं। 15 साल का बिहार जाम-सीएम पद की रेस में लालू का नाम-पांच साल में नीतीश का काम-जनता को चाहिए था विश्वास का दाम। नीतीश के हाथ में सत्ता आने वाला बिहार अब नहीं रहा पर लालू इस मुद्दे पर भी आज से पहले तक मुगालते में रहे। नीतीश सरकार के समय में चाहे धरातल पर काम हुए या ना हुए हों पर कम से कम अस्तित्व के बचाव का स्पेस जरूर सबको मिला। सब जानते हैं कि जिंदगी पहले है और रोटी बाद में। यही कारण है कि इस बार रोटी मुद्दा नहीं बनी। इस प्रचंड बहुमत का प्रमुख कारण नहीं बनी। कुछ अगर बना तो वो है जनता के मन से डर का खत्म होना। जनता इसी बेखौफ माहौल में जी लेगी। चाहे पेट में रोटी हो या ना हो। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस चुनाव के वक्त लालू ने पार्टी की चाल-ढाल को बदलने की पूरी कोशिश की। इसी चक्कर में तमाम अपने भी छोड़कर चले गए। उन्होंने खुद को भी बदलने की कोशिश की पर शायद गलत दिशा में। या कहा जाए देर से। 2005 में चुनाव हारने के बाद ही अगर वो जुट जाते तो शायद ये सीन नहीं होता। पार्टी और कुनबा तेड़ा तीन नहीं होता। पर उनके पास वक्त कहां था? रेल में सफलता की मेल ने उन्हें बिहार का ये खेल खेलने का वक्त ही नहीं दिया। लालू के यूं तो सारे दावे गलत साबित हो गए पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि कहीं ना कहीं मीडिया ने उनके साथ ज्यादती की है। प्री पोल और एक्जिट पोल के आंकड़े हुबहू होना उन्हें पच नहीं रहा है। मीडिया इसे अपनी जीत मान सकता है पर चुनाव आयोग को ये तो तय करना ही होगा कि ये पोल सही हैं या गलत। अगर गलत हैं तो फिर बंद होने चाहिए। लालू को सारा जनादेश रहस्य लग रहा है। इस रहस्य से वो परदा उठाएंगे। पर परदा इस बात से उठना भी जरूरी है कि आखिर अब लालू और राजद का क्या फ्यूचर है? लालू को पांच साल वेट करना होगा। वेट इस बात का भी करना होगा कि सरकार गलती करे। अपनी खूबियों से लालू अब सत्ता में नहीं आएंगे बल्कि नीतीश सरकार की गल्तियां ही वापस ला सकती हैं। फिलहाल तो ये दूर की कौड़ी लग रही है पर राजनीति है कुछ भी हो सकता है।
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