Thursday, December 2, 2010

तत

ऐसी बुरी लागी लत
पत्रकारिता में गए रत
शब्दों ने बिगाड़ी गत

झूटी दिखतीं सारी बत.
..अपनों के बदले मत
कोई नहीं लिखता खत

घूरती रहती है छत

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