देशपाल सिंह पंवार
पुलिस व प्रशासनिक अफसरों को उठाईगिरों जय-वीरू जैसी दोस्ती की मिसाल देने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने भरी भीड़ में बेटों के गुनाहों के लिए बाप के खून को जिम्मेदार ठहराया
बेटा अगर गलती करे तो बेटे की नहीं बाप की ठुकाई करो। गलती बाप की है। उसके संस्कारों की है। गुण तो बाप से ही आता है। औलाद दादा और बाप से ही तो सारे गुण लेती है। मैं कहता हूं कि बेटा यदि चोरी करता है, डकैती डालता है, बलात्कार करता है तो उसमें बेटे का क्या दोष? सारा गुनाह बाप का है। हमनें ही औलादों को ऐसा बनाया है। जैसा हमारा खून है, जैसा हमारा डीएनए है, जैसी हमारी सोच है, वैसा ही बेटा बनता है। अपराधी बेटा नहीं बाप होता है। हाल ही में एसपी व कलेक्टर को जय व वीरू से सबक लेने और उनकी राह पर चलने की बात कहने वाले छत्तीसढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने शुक्रवार को ये बातें उस समय कही जब राजधानी रायपुर में देश का 43 वां और छत्तीसगढ़ का पहला साइंस सेंटर खुल रहा था। तमाम नेता,अफसर और वैज्ञानिक तथा जनता वहां मौजूद थी। छत्तीसगढ़ इस साइंस सेंटर से कितना सीखेगा ये तो वक्त बताएगा लेकिन रमन सिंह खुद डाक्टर भी हैं और डीएनए या जीन्स को एक आम आदमी से बेहतर समझते हैं। इसी वजह से उन्होंने सारे बाप को बेटे की करनी के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। पर जो बात उन्होंने कही वो विज्ञान की कम और संस्कार की ज्यादा थीं। यानि करे कोई और भरे बाप-दादा। मुख्यमंत्री के इस अप्रत्यक्ष निर्देश के बाद पुलिस बाप-दादा का क्या करेगी ये तो पहले से ही अंदेश सबको है। पर कम से कम सारी जिंदगी हड्डियां तुड़वाकर किसी तरह घर चलाने वाला बाप तो पहले ही नालायक औलाद का खामियाजा भोगता रहता है। इस तरह के बयानों से तो उसके पास जीने का भी हक नहीं रहा।
सुराज को नमन: अनोखा कथन- बेजोड़ चमन- बस बाप का दमन
हिंदुस्तान ऐतिहासिक परंपराओं का देश है। हमारा इतिहास ऐसे किस्सों से भरा पड़ा है जहां पिता और गुरू के आदेश पर बेटे राजपाट तक त्याग देते थे। हां विदेशी धरती से आने वाली राजाओं की फौज यानि मुगल सल्तनत के किस्से भी ऐसे थे कि बेटा ही बाप और भाई को मारकर ताज हथिया लेता था। यानि दोनों ही पहलू से इतिहास अटा पड़ा है। पुरातन कहावत भी है कि जिसकी औलाद गलत निकल जाए तो वो जीते-जी मर जाता है। यानि हर मां-बाप की असली कमाई औलाद है। औलाद सही तो सब सही वरना मुंह दिखाने लायक नहीं रहते कहीं। रजवाड़ों के दौर में अमूमन ऐसा होता था कि औलाद की गलती तो बाप को भी अंदर कर दो। हां तब भी एक बात तो जरूर कही जाती थी कि जैसी करनी-वैसी भरनी। पर तब भी करे कोई और भरे कोई को गलत माना जाता था और आज भी ये रीत बदली नहीं है। खैर रजवाड़े तो अब रहे नहीं। लोकतंत्र है। अपने कायदे-कानून हैं। कानून कहता है कि जिसने गलती की है सजा उसे ही मिले यानि अगर बेटे ने की है तो केवल बेटे को। कानून ये भी कहता है और मानता है कि भले ही कोई दोषी बच जाए लेकिन किसी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। कानून तो बहुत सारे हैं लेकिन हर ताकतवर ने कानून की अलग-अलग व्याख्या कर ली है। गरीब कानून को अंधा तक कहने से नहीं चूकते तो अमीर और खासकर राजनेता कानून को अपने हिसाब से चलाने और हांकने की कोशिश तब तक जरूर करते हैं जब तक की समय सही होता है, या कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ती सारी दुनिया नहीं देखती। सारे देश में यही हो रहा है तो फिर छत्तीसगढ़ अलहदा कैसे रह सकता है? चाल, चरित्र और चेहरे वाली पार्टी का सुराज है। कानून भले ही बेटे के दोष के लिए बेटे को ही सजा देने की बात करता हो लेकिन सुराज के राजा यानि मुख्यमंत्री रमन सिंह आजकल अपना ही कानून बना रहे हैं और जनता को सिखा भी रहे हैं। अब वो कह रहे हैं कि अगर बेटे का दोष हो तो बाप को ठोको। वैसे सौम्य चेहरे के स्वामी रमन सिंह हमेशा दायरे में और गैरविवादित बयानों को लेकर जाने जाते रहे हैं परंतु आजकल हाव-भाव काफी आक्रामक और बयान काफी विवादित नजर आ रहे हैं। संघ कहता है कि भारत माता सबसे ऊपर है। वीर सावरकर और सरदार पटेल जैसी हस्तियों का अनुसरण करो। भाजपा भी कहती है कि भगवान राम के आदशोँ पर चलो लेकिन रमन सिंह की थ्योरी अलग ही राह पर जा रही है। आई ए एस व आईपीएस अफसरों को वो कहते हैं कि फिल्म शोले के जय और वीरू की तरह दोस्ती की मिसाल कायम करो। भगवान कृष्ण और सुदामा की दोस्ती या फिर अटल बिहारी वाजपेयी या एल के आडवाणी या फिर अन्य पार्टी के आदर्श चेहरों की मिसाल वो नहीं देते। उन्हें दोस्ती की मिसाल देने के लिए असली चरित्र नहीं मिलते । मिलते हैं तो केवल नकली और वो भी दो उठाईगिरे। जो जेब काटने से लेकर ऐसा कोई गलत काम नहीं जो फिल्म में ना किया हो। क्या लाजवाब मिसाल थी? संस्कारों की दुहाई देने वालों के क्या यही संस्कार हैं? क्या यही भगवान राम की राह पर चलने वाली पार्टी की नीति है? रमन सिंह की उस नसीहत और हिदायत के बाद अफसरशाही चाहे तो उन दो लफंगों जय-वीरू की तरह आशिकी भी कर सकती है? अब जय-वीरू अगर सुराज के आदर्श हैं तो बसंती का भी जरूर कहीं ना कहीं कोई अता-पता सुराज को जरूर होगा? शायद अफसरशाही को बता भी दिया गया होगा। क्या ताजा बयान इस बात का संकेत नहीं कि सुराज में अब सारे पिताओं की खैर नहीं? अरसे से छत्तीसगढ़ पुलिस को बेकार में मानवाधिकार वादी कोसते आ रहे थे कि वो गलती कोई करता है और सजा सारे घरवालों को दे देती है। ये तो अब पता चला कि जहां मुख्यमंत्री इस तरह के कानून को मानते हों तो फिर वहां की पुलिस को रोकने-टोकने व बोलने वाला कौन है? इसमें कोई दो राय नहीं कि परिवार के संस्कार और बाप-दादा के जीन्स बच्चों में आते हैं। लेकिन इस बात की कोई गारंटी दे सकता है कि जैसा बाप होगा-दादा होगा, वैसा ही बेटा और पोता होगा?क्या गरीब का बेटा आईएएस नहीं बन सकता? अमीर का बेटा कातिल नहीं हो सकता? डाक्टर का बेटा मुख्यमंत्री नहीं बन सकता? गांव में भैंस चराने वाला लालू मुख्यमंत्री नहीं बन सकता और फिर घोटाले नहीं कर सकता? उपलब्धियां मेहनत से आती है और संस्कार से तहजीब। पर तहजीब के लिए केवल घर के संस्कार ही काफी नहीं होते। आज के दौर में जिस तरह आर्थिक उदारवाद के नाम पर चकाचौंध फैली है। समाज में खुलापन आया है। टीवी व मोबाइल अपसंस्कृति फैली है। बच्चे मनमर्जी करने लगे हैं। समाज, वक्त और माहौल भी इसके लिए उतना ही दोषी है। बंदिशें लगाओ तो बाप कसाई और तालिबानी। ना लगाओ तो आफत। अगर हमारे बेटी-बेटे प्रेम विवाह कर लेते हैं तो क्या इसे भी गलत ठहराया जाए और मां-बाप को दोषी माना जाएगा? लाख टके का सवाल ये भी है कि जहां सरकारें अपनी कौम को खाना देने से ज्यादा शराबी बनाने पर तुली हैं वहां केवल मां-बाप को ही तहजीब सिखाने या बच्चों को डकैत, बलात्कारी और चोर बनाने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता? हां मां-बाप की जिम्मेदारी बेहतरीन शिक्षा व परवरिश देना होता है लेकिन मुख्यमंत्री तो पूरे प्रदेश के माई-बाप होते हैं। तो हर गलती के लिए आखिर में कौन जिम्मेदार हुआ? चलो मान लिया कि मुख्यमंत्री सही कह रहे हैं तो फिर इसका जवाब भी उन्हें ही देना चाहिए कि कोई भी सरकार, मंत्री या अफसर गलती करता है, जनता को शराबी बनाता है, गरीब रखता है, किसानों का हक छीनता है,कारोबारियों के लिए जल, जंगल, जमीन सब लुटा देता है तो इस तरह की हजारों गलतियों और अपराधों के लिए किसे और कौनसी सजा कब दी जाएगी? अगर कोई बिरादरी अपने समाज की बेहतरी के लिए लड़कियों और महिलाओं तथा बच्चों पर अंकुश लगाती है तो उसे तालिबानी समाज कहा जाता है लेकिन अगर मुख्यमंत्री ये कहें कि बेटा बलात्कारी हो तो बाप को ठोको, ये कहां तक जायज है? क्या लोकतंत्र में किसी मुख्यमंत्री का ये बयान तालिबानी नहीं? क्या इसे जायज माना जा सकता है? क्या अदालतों की अब जरूरत नहीं रह गई? मुद्दा बेहद गंभीर और संवेदनशील है। इस पर मकसद किसी की आलोचना करना नहीं बल्कि बहस करना है ताकि परिवार बेहतर हो। परिवार बेहतर तो समाज बेहतर, प्रदेश बेहतर और हमारा देश बेहतर। हम सब गर्व से कह सकें कि मेरा भारत महान। (EDITOR JANDAKHAL HINDI DAILY)
तो शादी में जीन्स का मिलान होगा
अगर रमन सिंह की चली तो यकीनन आने वाले समय में भारत में शादी-विवाह के लिए कुंडलियां नहीं मिलाई जाएंगी बल्कि लोग पहले जीन्स का टेस्ट कराएंगे और अगर मिले तो ठीक वरना राम-राम। भारत में शादी-विवाह कैसे होते हैं सब जानते हैं। यहां चाहे कोई आस्तिक हो या नास्तिक लेकिन कम से कम बच्चों की शादी के वक्त वो कुंडली जरूर उठाए घूमता है कम से कम हिंदू समाज में। लेकिन मानना पड़ेगा कि मुख्यमंत्री की सोच पूरी वैज्ञानिक है। क्योंकि अमूमन वैज्ञानिक ही इस बात को कहते हैं कि आनुवंशिकी दोष बढ़ते जा रहे हैं लिहाजा युवाओं को इस राह पर जाना चाहिए कि वो पहले आनुवंशिक कोड़ को जाने और जीवन साथी का भी पहचाने तब जाकर हाथ में हाथ लें वरना तबाही तय है। इसके पीछे वैज्ञानिक यही मानते हैं कि पति-पत्नी के बच्चे निरोगी रहेंगे। रमन सिंह भी डाक्टर हैं लिहाजा वो भी यही कहते हैं कि हर घर में ऐशवर्या राय और अभिषेक पैदा हो सकते हैं। अब लाख टके का सवाल ये भी पैदा होता है कि जिस घर में दौलत के भंडार हों वहां तो कोई भी बच्चा स्वस्थ रह सकता है लेकिन जिस राज्य की आधी आबादी महागरीब हो वहां कैसे इस मामले में सोचा जाए? हो सकता है कि सुराज की सरकार अगली बार कारोबारियों की तरह इस स्टेट के हर वाशिंदे को भी इस लायक बना दे कि वो जीन्स टेस्ट के बाद ही बच्चों को जन्म दे। फिलहाल तो सुराज में इस आबादी को दो वक्त की रोटी और दो गोली दवा तक के लाले हैं। जो जैसा पैदा हो जाए सब भगवान की मर्जी।